मैं सावन बरखा बन बरसूँ
तुम सुर गाओ मल्हार पिया
तन हो जैसे सूखी लकड़ी
मन को बेधे बिरह कटारी
आओ भी देखो आँखों में
पतझड़ सा है मौसम भारी
युग्म पत्र सा तुम बन जाओ
मैं हो जाऊँ कचनार पिया
मेरे बिरहा के गीतो में
आ जाए मद मस्त खुमारी
मदिरा बन छू लो अधरों को
तन-मन हो जाए मतवारी
दुनिया की हर रंग भुलाकर
तन मन दूँ मैं न्योछार पिया
तुम भर लो बाँहो मे मुझको
प्रेम सुधा रस उर पाने को
बूढ़ी आहें फिर जग आई
प्रेम गीत मन बरसाने को
मैं यौवन की रंभा जैसी
तुम कुसुमाकर रतनार पिया
हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़
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