"आ सूरज से आँख मिलाएँ"
हिम्मत की गाथा फिर लिखने
आ सूरज से आँख मिलाएँ
अंधकार की इस दुनिया में
मन की काली सी रातें हैं
पढ़े लिखे लोगों में होती
अब बौने पन की बातें हैं
चल हाथ पकड़ कर उनको भी
सही राह चलना सिखलाएँ
अंधे हैं सब आँखों वाले
झूठे तन पर इतराते हैं
ढोंगी बनकर ये अपना मन
एसे ही तो बहलाते हैं
अंधो की नगरी में आओ
कोई दीप जलाकर आएँ
जीवन के इन चार दिनो में
काम लोभ जैसे चोखा है
पैसा पैसा केवल पैसा
बस मृगतृष्णा का धोखा है
उलट पुलट की इस बाँसी में
धुन फिर से हम एक बजाएँ
हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा
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