Wednesday, 2 October 2024

एक लड़की

हाँ  एड़ियों  के  बल  पर  लपकती  लड़की
अच्छी   लगतीं   हैं   बेर    तोड़ती   लड़की


सूरज   उठाये   सर   पे    मटके  की  तरह
सुबह  हुईं  नही  कि  गाँव  नापती   लड़की


माथे    से    पसीना   पोंछती   है   थककर
धूप   सँग   फिर  बतियाती  खेलती लड़की


तानो   का    कुर्ता   है   लाज  की   ओढ़नी
बड़ी   मुश्किल   से  सजती  सँवरती लड़की


ये  खुशियाँ   भी   रोज   ही   दरक जातीं हैं
रोज  अपनी   किस्मत   से  हारती   लड़की


काश  कहीं  मिल  जाती   दौड़ती  उछलती
लंबी   सी   चोटियों    को   छेड़ती   लड़की


हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़
रचना श्रेणी-सजल
यह रचना मौलिक एवं अप्रकाशित है।






















Wednesday, 25 September 2024

कविता नुमा ग़ज़ल


शहर   का    हर    शख़्स   तेरा   दीवाना है
कोई     पागल     है    कोई     मस्ताना   है


हर  किसी   को बहुत  प्यार से  पिलाती हो
ये    तेरी    आँखें      क्या   शराबख़ाना  है


उसने    बालों    को   यूँ   झटकाया   होगा
आज  मौसम  हुआ   किस कदर सुहाना है


मेरी  आँखों  में  उतरने  की भूल मत करना
ये तो लावों का जलता हुआ इक ठिकाना है


मिट्टी    से   प्यार  करना   सीख    लो  भाई
इसी  मिट्टी   में   एक   दिन  मिल  जाना  है


कभी मस्जिद कभी मंदीर में उड़कर आ गये
इन  परिंदों का न कोई मजहब न ठिकाना है


हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़

बेटी तुमको पढ़ना होगा

बेटी    तुमको     पढ़ना   होगा,
इतिहास   नया   गढ़ना   होगा,

उठो   कलम   से  नाता  जोड़ो,
पढ़ने  से  तुम  मुँह  मत   मोड़ो।
अपने   अधिकारों    को   पाने,
पुस्तक  से  अब  जुड़ना  होगा।।

अँधियारों    से    गहन   लड़ाई,
शस्त्र  है   केवल,  एक   पढ़ाई।
दुनिया  से   लड़ने    के   पहले,
खुद  से  खुद  ही  लड़ना  होगा।।

बिंदी    चूड़ी    कंगन    झुमके,
छोड़ो   तुम  ये   लटके  झटके।
सावन  के झूलों   को तज कर,
तुम्हे   गगन  तक  उड़ना  होगा।।

पग-पग पर क्यों ठोकर खाना,
भीख माँग कर क्यों कुछ पाना।
अपनी    मेहनत    के  बलबूते,
खुद   से   रंग  बदलना  होगा।।


सती   सावित्री  अब मत बनना,
काहे   का   ये    आँहें    भरना।
ममता  प्यार  त्याग के सँग सँग,
काँटों   में   भी    ढलना   होगा।।

पीछे    मुड़कर     पछताने   से,
लाभ    कहाँ    रोने   गाने    से।
जीवन  की   क्यारी  में  तुमको,
खिलना   होगा   फलना   होगा।।

बेटी    तुमको     पढ़ना   होगा,
इतिहास   नया   गढ़ना   होगा.....


हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़
6/10/24 पत्रिका काव्यंजली में प्रकाशित








Sunday, 15 September 2024

गीत

पल दो पल का प्यार-व्यार है,
फिर   तन्हा  भी  रहना  होगा।
जिन  आँखों  से  देखे  सपने,
उन  आँखों   से  रोना   होगा।।


दाढ़ी    मूँछें     लंबी  -  लंबी,
बाल      जटा    वाले     होंगे।
धोबी   जैसा   कुत्ता   बनकर,
'घर  न  घाट' भी  होना  होगा।।


चैन-वैन    सब   खो   जाएँगे,
रातों     तारे     गिनने    होंगे।
चंद्रकांत   की    शीतलता  में,
सूरज   जैसा   जलना   होगा।


रिश्ते-नाते          यार-दोसती,
अम्मा-बापू      खो     जाएँगे।
घूम-घूम    कर  गली मुहल्ला,
पागल   जैसा   रहना   होगा।।


गम  के  आँसू  मदिरालय  में,
मय   पी   कर   पोंछे  जाएँगे।
टूट  चुके  दिल   के प्यालों में,
तन्हाई   भर    पीना    होगा।।


दुख ,पीड़ा   सँग - साथी होंगे,
और नही   कुछ हासिल होगा।
जी कर   मरना मर कर जीना,
इक दिन फिर खो जाना होगा।।



पल दो पल का प्यार.......


हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़





Saturday, 7 September 2024

मेरी माँ...

मेरी   माँ   भी  अजब-गजब  है,
बात  समझ  यह  अब  आया है।
छलनी     से     धूप    छानकर,
उसने    छत    पे   सूखाया   है।।

तिकड़म   बाजों    को   यूँ   ही,
पल     में     धूल    चटाया   है।
जिसने     अवकात       बताया,
माँ   ने   उसको   नचवाया    है।।

दुर्गा     काली      रनचंडी     है,
बनी   लताओं   सी   काया   है।
कभी  कूटती  है   जी  भर  कर,
कभी  प्यार की   वह  छाया  है।।

पत्थर   को  भी  सोना  कर  दे,
एसी      उसकी      माया     है।
माँज-माँज कर घीस-घीस कर,
मुझको  चम-चम   चमकाया है।।

जहाँ-जहाँ   पग   धारे   अम्मा,
वैभव  चलकर  खुद  आया  है।
बगिया   जैसे  घर  आँगन  को,
फूलों   से   भर  महकाया    है।।

उस   ममता  की  मूरत  का ही,
आओ हम पल-पल ध्यान करें।
जिसके  आँचल  में  सदियों सें,
निर्मल   ममता  सुख  पाया  है।।

हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़
रचना श्रेणी-गीत

Friday, 6 September 2024

कविता नुमा ग़ज़ल


प्यार-मुहब्बत  में झगड़ा भी करना पड़ता है
घर  है तो घर को  जिंदा भी  करना पड़ता है

चुल्लू भर पानी में क्या बुझती है प्यास कभी
चुल्लू को दिल का दरिया भी करना पड़ता है

रंगो  से  भी  जीवन   में  होता  उबकाई  पन
फिर से  जीवन को सादा भी करना पड़ता है

दुनिया आसानी  से  मान जाय,ये छोड़ भरम
दुनिया से  वादा , झूठा भी  करना  पड़ता  है

ज्यादा भी  मीठा  रस  काम नही आता प्यारे
जीवन  को  खट्टा कड़वा  भी करना पड़ता है

झूठों   के   पौ-बारह    होते    हमने  देखे   हैं
सच  को  तो  रोना-धोना  भी करना पड़ता है

हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़
रचना श्रेणी-कविता



 

Wednesday, 4 September 2024

कविता नुमा ग़ज़ल

पीड़ा    में   आनंद    घुला  है
काँटो  में  ज्यों  फूल खिला है


प्यार  करूँ या  फिर दूँ  गाली
एक  पुराना   दोस्त   मिला  है


मेरे  घर   जिस  दिन  आओगे
कहना  होगा   इश्क  बला   है


कितने  वर्षों     के   बाद   सही
रस्ता  मुझको  एक    मिला   है



हँसना- वसना  सीख-साख ले
हँसना   भी  तो  एक  कला है


राजाओं   की  हर   बाजी   में
प्यादों   ने   भी  दाँव   चला है


हँस्ता   गाता   रहता   हूँ   पर
मेरे    भीतर    एक   ख़ला  है


हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़
रचना श्रेणी- कविता