हाँ एड़ियों के बल पर लपकती लड़की
अच्छी लगतीं हैं बेर तोड़ती लड़की
सूरज उठाये सर पे मटके की तरह
सुबह हुईं नही कि गाँव नापती लड़की
माथे से पसीना पोंछती है थककर
धूप सँग फिर बतियाती खेलती लड़की
तानो का कुर्ता है लाज की ओढ़नी
बड़ी मुश्किल से सजती सँवरती लड़की
ये खुशियाँ भी रोज ही दरक जातीं हैं
रोज अपनी किस्मत से हारती लड़की
काश कहीं मिल जाती दौड़ती उछलती
लंबी सी चोटियों को छेड़ती लड़की
हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़
रचना श्रेणी-सजल
यह रचना मौलिक एवं अप्रकाशित है।